हिन्दी परीक्षा मेरे लिए एक डरावना सपना-सा है,
यह है एक आफ़त, जो भयानक सूनामी-सा है |
इस परीक्ष में मेरी कभी एक नहीं चलती है,
इसका नाम सुनते ही मेरे चेहरे पर हवाईयाँ उड़ जाती है |
परीक्षा शुरू होने को है बस एक साप्ताह,
लेकिन हिन्दी परीक्षा है 'बड़ा ख़तरनाक, बड़ा भयावह |'
किताब-कॉपी-गाइड में और उन्हे रत्ना शुरू किया |
गद्य तथा पद्य पाठ मैंने पूरा पढ़ लिया
बेचैनी तथा उबाऊ में मैंने अपना पहला दिन पढ़ाई मे बिताया |
दूसरे दिन मैंने पूरे व्याकरण का ज्ञान लिया,
पूरे एक वर्ष के व्याकरण को मैंने एक ही दिन में . लिया |
काल, क्रिया, कर्म को पढ़ते ही मेरे रंग उड़ गए,
हिन्दी परीक्षा आने को बस पाँच दिन बच गए |
फिर बारी आई निबंध और पत्र पढ़ने की
गाइड से सब को रटकर उनका नियम याद रखने की |
चौथे दिन मैंने अपनी वर्तनी एवं सुलेख पर ध्यान दिया,
बनियान से लेकर संगणक आदि शब्दों को बार-बार लिखना शुरू किया |
यह है एक आफ़त, जो भयानक सूनामी-सा है |
इस परीक्ष में मेरी कभी एक नहीं चलती है,
इसका नाम सुनते ही मेरे चेहरे पर हवाईयाँ उड़ जाती है |
परीक्षा शुरू होने को है बस एक साप्ताह,
लेकिन हिन्दी परीक्षा है 'बड़ा ख़तरनाक, बड़ा भयावह |'
किताब-कॉपी-गाइड में और उन्हे रत्ना शुरू किया |
गद्य तथा पद्य पाठ मैंने पूरा पढ़ लिया
बेचैनी तथा उबाऊ में मैंने अपना पहला दिन पढ़ाई मे बिताया |
दूसरे दिन मैंने पूरे व्याकरण का ज्ञान लिया,
पूरे एक वर्ष के व्याकरण को मैंने एक ही दिन में . लिया |
काल, क्रिया, कर्म को पढ़ते ही मेरे रंग उड़ गए,
हिन्दी परीक्षा आने को बस पाँच दिन बच गए |
फिर बारी आई निबंध और पत्र पढ़ने की
गाइड से सब को रटकर उनका नियम याद रखने की |
चौथे दिन मैंने अपनी वर्तनी एवं सुलेख पर ध्यान दिया,
बनियान से लेकर संगणक आदि शब्दों को बार-बार लिखना शुरू किया |
फिर अगले दिन मैं बैठ गया समानार्थी-विपरीतार्थी शब्द पढ़ने को,
क्योंकि परीक्षा में वे तैयार थे मेरा अर्थ-अनर्थ करने को |
परीक्षा के मारे मैं पूरा बेचैन एवं डर-सा गया था,
परीक्षा शुरू होने को बस दो दिन बचा था |
पूरे पाठ्यक्रम को मैंने फिर से दोहराने का निश्चय किया,
इसलिए किताब-कॉपी-गाइड मैंने फिर हाथ में उठा लिया |
मैंने सभी चीज़ों को पढ़ा, लिखा और दिमाग़ में घुसाया,
थक जाने पर भी मैंने हार ना मानी और अपना हौसला बढ़ाया |
आखिरी दिन मैं किताब से चिपका रहा,
यहाँ तक कि खाना खाते समय भी मैं पढ़ता रहा |
मैं पूरे यत्न से परीक्षा की तैयारी में लगा था,
फिर भी अगले दिन की हिन्दी परीक्षा से मैं डर रहा था |
अगले सुबह विद्यालय पहुंचकर
चकित हो गया मैं सभी के मुँह से एक अनोखी बात सुनकर,
मेरा दिमाग़ चकरा गया और मैं ज़मीन पर गिर गया
तब मेरे दोस्तों ने पूछा 'मुझे क्या हो गया?'
'मैं बोला कि जिस परीक्षा के लिए मैंने इतनी मेहनत की है
वह परीक्षा तो एक महीने बाद होने को है |
तीस जून समझकर जिसके लिए मैंने रात-दिन एक की है
वह तो तीस जुलाई होने को है |'
मेरी यह हास्यास्पद घटना सुनकर सब लोग हँसे
और सब ने मेरा मज़ाक उड़ाया,
और बेवकूफ़ एवं किताबी-कीड़ा बनने के कारण
उन्होनें मुझसे यह कविता लिखवाया |
- पार्थप्रतिम माली
Good🤓🤓🤓🤓🤓🤓
ReplyDeleteIt is nice
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